महेश नवमी 2024 के शुभ अवसर पर
— लेखक: श्री शिशिर जी सोमानी, इन्दौर
भगवान शिव की प्रासंगिकता आदि से अनंत तक
महेश नवमी, हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। भगवान शिव, जिन्हें भक्त भोलेनाथ, महादेव, शंकर भी पुकारते हैं , हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक हैं । यह भगवान शिव के भक्तों , विशेषकर माहेश्वरी जाति के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है। माना जाता है कि राजस्थान के लोहार्गल में मृतप्राय: 72 क्षत्रियों को भगवान शिव ने अस्त्र त्याग तुला ले वैश्य का कर्म करने का आशीर्वाद दिया, वहीं से वे सब और उनके वंशज माहेश्वरी जाति के नाम से पहचाने जाने लगे । इस दिन भगवान शिव की विशेष पूजा और उपासना की जाती है।महेश नवमी पर, हम माहेश्वरी समाजजन अपने आराध्य भगवान शिव का विशेष आशीर्वाद मांगते हैं, उन्हें खास तौर पर याद करते हैं, जबकि उनकी कृपा तो हम सब पर सदा यूं ही बनी रहती है। हम विशेष स्नेह की, अनुराग की, आशा रखते हुए, भगवान शिव के प्रति अपनी श्रद्धा और भक्ति व्यक्त करने के लिए और अपने पर उनके आशीर्वाद बनाए रखने के लिए धन्यवाद ज्ञापित करना चाहते हैं। ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि हमारा अटूट विश्वास है, कि भगवान शिव ही है, जो हमेशा से प्रासंगिक थे, हैं और रहेंगे ।
उनकी प्रासंगिकता केवल धार्मिक क्षेत्र तक ही नहीं बल्कि जीवन के हर पहलू में उनका प्रभाव देखा जा सकता है । आध्यात्मिक स्तर पर वे मोक्षदाता हैं, वे भक्तों को जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति दिलाकर उन्हें मोक्ष प्रदान करते हैं। योग और ध्यान के देवता, शिव अपने भक्तों को आत्मज्ञान और आंतरिक शांति प्राप्त करने में मदद करते हैं। इसके साथ ही, वे परिवार और समाज के रक्षक हैं। वे अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और उन्हें सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति दिलाते हैं।
सामाजिक स्तर पर भगवान शिव समानता के प्रतीक हैं। वे सभी जातियों, धर्मों और लिंगों के लोगों को समान मानते हैं। वे असहायों और दीन-दुखियों के रक्षक हैं। वे गरीबों, बीमारों और पीड़ितों में भरोसा जगाते हैं, उनकी मदद करते हैं। वे प्रकृति और सभी जीवों की रक्षा करते हैं।
व्यक्तिगत स्तर पर शिवजी आत्म-अनुशासन और शक्ति के प्रतीक हैं। वे भक्तों को अपने इच्छाओं और क्रोध पर नियंत्रण रखने में मदद करते हैं। वे साहस और दृढ़ता के प्रतीक हैं और भक्तों को जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना करने में मदद करते हैं।
भगवान शिव आध्यात्मिक ज्ञान, सामाजिक न्याय, और व्यक्तिगत विकास के मार्गदर्शक हैं अत: सदैव प्रासंगिक हैं क्योंकि वे जीवन के सभी पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।
भगवान शिव का जन्म रहस्य और विशेषता
विभिन्न ग्रंथों और कथाओं में भगवान शिव के जन्म के अलग – अलग वर्णन मिलते हैं। यह भक्तों की श्रद्धा और विश्वास पर निर्भर करता है कि वे किस कथा को स्वीकार करते हैं। कुछ ग्रंथों के अनुसार, भगवान शिव का जन्म नहीं हुआ था, वे स्वयंभू हैं, यानी वे सदैव से थे और रहेंगे। वे सृष्टि के आदि देव हैं, जिन्हें न तो जन्म मिला और न ही मृत्यु। कुछ ग्रंथों में भगवान शिव का अर्धनारीश्वर रूप दर्शाता है कि वे सृष्टि के स्त्री और पुरुष दोनों तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
मान्यता है कि त्रिपुरासुर एक शक्तिशाली राक्षस था, जिसने देवताओं को पराजित कर दिया था। भगवान शिव ने महेश नवमी के दिन ही त्रिपुरासुर का वध करके देवताओं और ब्रह्मांड को बचाया था।
भय और नकारात्मकता से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव की आराधना
भय और नकारात्मकता मानव जीवन के अभिन्न अंग हैं। हरेक इंसान जीवन में कभी न कभी इन भावनाओं के दौर से गुजरता है, जो शुरुआत में उसे कमजोर बनाती हैं, आत्मविश्वास को कम करती हैं, और जीवन का पूरा आनंद लेने से रोकती हैं, परंतु इन्ही का सामना कर, सीखकर वह मजबूत भी बनता है । नकारात्मकता का सामना करना सीखने और उस से पार पाने के लिए भगवान शिव में विश्वास भी बहुत मदद करता है।
हिंदू धर्म में, भगवान शिव को संहारक और परिवर्तनकर्ता के रूप में, साहस और शक्ति के देवता के तौर पर जाना जाता है। वे पुरानी, नकारात्मक चीजों को नष्ट करते हैं और नई, सकारात्मक चीजों को जन्म देते हैं। इसलिए, भगवान शिव की आराधना भय और नकारात्मकता से मुक्ति पाने का एक शक्तिशाली तरीका हो सकता है। इसके अलावा, भगवान शिव को ध्यान और योग का देवता भी माना जाता है। उनका ध्यान करने से मन शांत होता है और नकारात्मक विचारों से मुक्त होते हैं।